The Journey Home: A Lost Soul Finds Direction with an Unlikely Guide
FluentFiction - Hindi
The Journey Home: A Lost Soul Finds Direction with an Unlikely Guide
दिल्ली के व्यापक चारों ओर फैले घने जंगल की तरह बाजारों और गलियों में खोया हुआ था राहुल, एक कलकत्ता के मूल निवासी। वह एक नई नौकरी की आरज़ू में बड़ी उत्साह के साथ अपने घर-परिवार को छोड़कर दिल्ली चला आया था। लेकिन किसी ने उसे दिल्ली के विशाल विस्तार का अनुभव नहीं करवाया था।
Rahul, a resident originally from Kolkata, felt lost in the vast expanse of markets and streets that spread like dense forests around Delhi. With a great enthusiasm to pursue a new job, he had left his home and family behind and come to Delhi. However, no one had prepared him for the vastness of Delhi.
वह अपने किराएदार कमरे से बाजार तक जितना मार्ग था, वह याद कर गया था लेकिन वापसि मार्ग में उसने एक ग़लत मोड़ ले लिया। अब वह ढूंढ रहा था, पहचान रहा था और मानसिक रूप से अपनी स्थिति को जानने की कोशिश कर रहा था।
He remembered the route from his rented room to the market, but on his way back, he took a wrong turn. Now, he was searching, trying to recognize and mentally understand his situation.
राहुल एक बर्तन बेचने वाली बुढ़िया से रास्ता पूछता है, लेकिन वह बदसूरत अंग्रेजी में जवाब देती है और वह उसकी बात सजगता से नहीं समझ पाता। फिर वह एक पुलिस वाले से रास्ता पूछता है लेकिन वह भी हिंदी में उसे बताता है, जिसमें बहुत सारे कठिन शब्द होते हैं जिन्हें वह समझ नहीं पाता।
Rahul asked an old lady selling utensils for directions, but she replied in broken English and he couldn't understand her response. Then he asked a police officer for directions, but even he explained in difficult Hindi words that Rahul couldn't comprehend.
उसकी विफलता पर वहाँ मौजूद कुत्ता भौंक रहा था जैसे वह उसकी मदद करना चाहता था। राहुल, थक और निराश हुए, गर्मी में सूखे गले को सहलाते हुए, कुत्ते की ओर मुड़ा, "तुम्हें पता है मेरा घर कहाँ है?" उसने व्यंग्यता से पूछा।
As he faced failure, a dog that was present there started barking as if it wanted to help him. Exhausted and hopeless, Rahul turned towards the dog, wiping the sweat from his dry throat, and sarcastically asked, "Do you know where my home is?"
कुत्ता उत्तेजित होकर भौंका और उसके चारों ओर घूमने लगा। फिर वह जोर से भौंका और एक दिशा में दौड़ने लगा। "क्या तुम मुझे मेरे घर ले जा सकते हो?" उसने कुत्ते से कहा।
The dog got excited and barked, then started moving around. Then it barked loudly and started running in one direction. "Can you take me to my home?" Rahul asked the dog.
कुत्ते ने फिर भौंका और राहुल उसके पीछे दौड़ा। उनकी यह अनोखी टीम एक गली, दूसरी गली, तीसरी गली और फिर चौथी गली दौड़ी। और फिर आखिरकार, जैसे कि किसी जादू से, राहुल अपने किराए के घर के सामने खड़ा हुआ।
The dog barked again, and Rahul ran behind him. Their unique team ran through one street, then another, then a third, and finally a fourth. And finally, as if by magic, Rahul stood in front of his rented house.
"तुमने मुझे घर ले आया!" उसने आश्चर्यचकित होकर कहा। कुत्ते ने खुश होकर भौंका और एक पल के लिए ऋषीभूमि का प्रदर्शन करके चला गया।
"You brought me home!" he said, astonished. The dog barked happily and, after a momentary display of triumph, went away.
संघर्ष के बाद, राहुल अब यह समझ गया था कि दिल्ली में सब कुछ सीधा-सादा नहीं है। उसे धीरज और समझ दोनों की आवश्यकता थी। और हाँ, कभी-कभी निराशा में भी मदद मिल सकती है, चाहे वह एक बेजबान कुत्ते की ही क्यों ना हो। उस दिन के बाद, राहुल ने कभी भी रास्ता नहीं खोया। अगली बार जब वह बाजार गया, तो वह पहले से ही सबसे अच्छी दिशा जानता था। उसने आत्मा के साथ कहा, "मैं खुद को कभी खोया ही नहीं। मैं बस अनजाने में खुद को खोज रहा था।" और उस दिन के बाद, राहुल ने अपने जीवन को सच्चे रूप से समझा।
After struggling, Rahul now understood that nothing in Delhi is straightforward. He needed both patience and understanding. And yes, sometimes help can come even from a helpless dog. Since that day, Rahul never lost his way again. The next time he went to the market, he already knew the best direction. He said to himself, "I never really lost myself. I was just searching unknowingly." And from that day onwards, Rahul truly understood his life.